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Thursday, March 19, 2015

सिसकिया…..

सिसकिया…..

सिसकिया  क्यों  तुम  लेती  रहती हो 
मुँह  खोल आवाज़  क्यों  नहीं  देती हो 
देगा तोह तेरा  साथ  सारा  ज़माना
मगर एक बार मदद की गुहार तुम  क्यों  नहीं देती हो

हाथ हमारे भी थम जाते हैं,
जब  तुम  गलत  का  साथ  दे देती  हो
और  चुप  चाप  हो  कर , सब कुछ   खुद  ही  सहती  रहती  हो

लायक  नहीं  हो  तुम ,पति  के  लातो  और  चाटों की ,
न ही लायक  हो  उसके  अश्लील  इल्ज़ामों  की ,
बाबा  की  इज़्ज़त  तुम मायके  से  साथ  ले  आई   हो ,
और  किसी  और  के  हातों तुम  कैसे  वो  इज़्ज़त  उछलवा  पायी  हो

क्या  तुम  इतनी  बेचारी  हो  की,
एक  झूठे  प्यार  की  आड़ के  लिए  चांटे  शहती  हो
और  सिर्फ  एक  सहारे  के  लल्लाच में
अपना  सम्मान  इतनी आसानी  से दे देती  हो

क्या  तुम  इतनी  लाचार हो की
अपनी  आवाज़ खुद  नहीं  बन  सकती  हो ,
क्या   सिर्फ  मर्द  के  नाम के  सहारे  जीवन  ही जी  सकती  हो.

ऐसा नहीं हैँ,क्योकि
तुम एक मजबूत शक्ति की बेटी हो,
और अपने सम्मान से भी जी सकती हो,
पिता की शान और घर की लक्ष्मी हो,
और किसी भी अन्याय को सह नहीं सकती हो,

ऐसी  चाप  न छोड़ो तुम  अपनी  बेटी  पर
क्योकि , कमज़ोर  मिस्साल  तुम बन  कर रह जाओगी
और  फिर  से  अपनी  ही बेटी  के जीवन  में  ,
खुद  का  अतीत  दोहराओगी

2015@monikadubey